गांधी जी के एकादश व्रत
गांधी जी का जीवन मूल्याधारित रहा है | आत्मानुशासन के लिए उन्होंने कतिपय व्रतों के पालन पर बल दिया है | गांधी जी के अनुसार व्रत का अर्थ है, “अटल निश्चय” | वे यह भी कहते हैं कि समस्त संसार का अनुभव इस बात की गवाही देता है कि ऐसे निश्चय के बिना मनुष्य उत्तरोत्तर ऊपर नहीं उठ सकता | जिन व्रतों का गांधी जी ने उल्लेख किया है वे इस प्रकार हैं – (१) सत्य (२) अहिंसा (३) ब्रह्मचर्य (४) अस्तेय (५)) अपरिग्रह (६) अस्वाद (७) अभय (८) अस्पृश्यता निवारण (९) शरीर-श्रम (१०) सहिष्णुता और (११) स्वदेशी | इन व्रतों में पहले ५ व्रत पातंजल योग-सूत्र में ‘पञ्च महाव्रत’ के नाम से भारतीय परम्परा में पहले से ही मौजूद हैं | अस्वाद और अभय का भी भारतीय नीतिशास्त्र में उल्लेख है | शेष व्रत – शरीर-श्रम, सर्व-धर्म समानत्व, स्वदेशी और अस्पृश्यता निवारण – समय की मांग को देखते हुए गांधी जी ने सत्याग्रह अनुशासन में अलग से जोड़े हैं | गांधी जी के व्रतों की काव्यात्मक प्रस्तुति सर्व प्रथम भवानी प्रसाद मिश्र ने की थी | उनसे प्रभावित होकर और उनसे क्षमा माँगते हुए मैंने भी इन्हें काव्तात्मक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहा हूँ|