२. अहिंसा
सरल, सीधा
किन्तु संकरा भी बहुत है
सत्य का पथ, और वैसा ही
अहिंसा मार्ग भी है !
जिस तरह नट
देह को कर संतुलित
तनी रस्सियों पर चले एकाग्रता से
उससे भी अधिक मुश्किल
अहिंसा मार्ग पर चलना
मानों धार पर तलवार की
संतुलन करना.
पर सतत अभ्यास, कोशिश से
करतब साहसिक यह
नि:संदेह हम दिखा सकते हैं !
नश्वर देह की इस कठिन कारागार में
कैद है जबतक मनुष्य
है नहीं उसकी नियत में
पूर्णता उपलब्ध करना
पर सत्य की कुछ कुछ झलक
मिलती है हमें निश्चित ही
अहिंसा के मार्ग में !
बहुत सी कठिनाइयां हैं
बहुत से रोड़े बिछे हैं
वाह्य बाधाएं हमें घेरे खड़ी हैं
लालच और घृणा में
लोग हमको रोके हैं मार्ग से
किन्तु अपनाकर हिंसा
जूझना इनसे, या मिटा देना इन्हें
लक्ष्य से अपने होना है विरत !
व्यक्ति कितना भी बुरा हो
मार कर उसको हम
अंत नहीं कर सकते बुराई का
इसके लिए तो झांकना होगा हमें अन्दर
पहचानना होगा उन दुश्मनों को
बाधक जो रहे हैं सत्य के पथ के !
किन्तु कैसा दुर्भाग्य है यह
हम लड़ रहे हैं वाह्य दुश्मन से
और बैरी जो बसे हैं हमारे अन्दर
पहचानने से मना कर रहे हैं उन्हें !
दंड से जो सुधर जाए हमेशा के लिए
व्यक्ति ऐसा है नहीं कोई
विजय तो प्रेम से ही संभव है
और इसके हेतु आवश्यक
धैर्य है, दुःख-वहन है !
दुश्मनों को
मित्रता की परिधि में लाना ही
कर्म-कौशल है !
कर्तव्य को समझें
मिटाएं अहं को
आसक्ति को त्यागें
तभी यह काम संभव है !
किसी को भी
हानि पहुंचाने से बचना
अहिंसा की न्यूनतम अभिव्यक्ति है
अहिंसक आचरण में तो
अशुभ इच्छा पालना भी गलत है
बुरा सोचना भी
हिंसा, पाप है !
देहधारी मनुज लेकिन
रह नहीं सकता
बिना किए हिंसा
देह पालन में करोड़ों जीव
खपा देते हैं हम – अनजाने, अचेतन !
कभी जी में आता है कर लें आत्मह्त्या
किन्तु यह भी तो नहीं है हल !
रास्ता बस एक ही है –
हिंसा के दायरे को कम करें
अपने प्यार को भरसक पनपने दें
आसक्ति से हम मुक्त हों !
अहिंसा सत्य
दोनों ही बसे हैं एक दूजे में
सिक्का एक ही है
पहलू अलग हैं –दो.
पहचानना मुश्किल है
पट कौन सा है और कौन है चित
फिर भी मैं तो कहूँगा यही
सत्य साध्य,
साधन अहिंसा है !
अहिंसा है हमारी पहुँच के अन्दर
उसे यदि साध लें
अपने परम कर्तव्य
सत्य तक निश्चय ही पहुंचेंगे…
तय है ||