देश का सर्वोदय समाज आज एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है, जहाँ से अपनी जड़ों की तरफ लौटना उसके लिए असंभव नहीं, तो भी मुश्किल अवश्य है और यह भी तभी संभव है, जब कोई निस्पृह, सत्तानिरपेक्ष और निरहंकारी व्यक्ति शीर्ष पदािधकारी का पद संभाले। अन्य संगठनों की तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन सेवा संघ के लिए तो यही यथार्थ है. सर्व सेवा संघ के साथ जुड़ने के अपने कुछ वर्षों के अनुभव में मैंने यही देखा है. मैंने वह समय भी देखा है, आप में से भी अनेक लोगों ने देखा होगा, जब आचार्य राममूिर्त, नारायण देसाई, ठाकुरदास बंग और सिद्धराज ढड्ढा जैसे वरिष्ठ गांधीजन सर्व सेवा संघ के कर्णधार थे और उनके एक-एक वक्तव्य को पत्रकार और राजनैतिक जगत गंभीरता से लेता था। आज वह दृश्य अत्यंत विपरीत दिशा में परिवर्तित हो गया है. आज के सर्व सेवा संघ और सर्वोदय के अन्य संगठनों की भी कमोबेश यही स्थिति है, विचार और दर्शन तो केवल शीर्षक बन कर रह गया है. हम गांधी जी तथा उनके सहकर्मियों द्वारा सृजित संपत्तियों की रक्षा मात्र में अपनी शक्ति लगा रहे हैं और उनको भी ठीक से सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं। हम कहां से कहां आ गये हैं, यह गंभीर चिन्ता और चिन्तन का विषय है।
पिछले दिनों हुए घटनाक्रम में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष श्री महादेव विद्रोही को पदमुक्त कर श्री चंदन पाल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, जो कि संघ में पहले कई बार हो चुकी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति तो थी और अवांछनीय भी नहीं थी, लेकिन श्री महादेव विद्रोही ने जो अविवेकपूर्ण और दुराग्रही रवैया अपनाया, वह सर्वोदय और गांधी विचार की अवधारणा के अत्यंत विपरीत था, जिसे सर्वोदय के इतिहास में हमेशा याद किया जायेगा। उनका ‘मेरे अतिरिक्त सर्व सेवा संघ का अन्य कोई अध्यक्ष नहीं हो सकता’ वाली दम्भयुक्त सोच सर्व सेवा संघ के लिए तो चिन्ताजनक है ही, अपने आपको सर्वोदय और गांधी विचार का अनुयायी बताने वाले महादेव विद्रोही के लिए भी गंभीरतापूर्वक अपना आकलन करने का विषय है, यदि वे ऐसा करने के लिए तत्पर हों, तो?
यद्यपि पहले भी सर्व सेवा संघ के कई अध्यक्षों को हटाया गया है, लेकिन वे बिना किसी प्रतिरोध के स्वयं हट गये थे और उनके हटने या हटाये जाने की आवाज संघ से बाहर नहीं गयी, लेकिन श्री महादेव विद्रोही को हटाये जाने की चर्चा पहले भी और बाद में भी सर्वत्र चर्चा का विषय बनी। इसके लिए श्री महादेव विद्रोही लम्बे समय तक याद किये जायेंगे।
अभी भी महादेव विद्रोही और उनके कुछ समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि उनको हटाया जाना ‘उतावलापन था, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी’। इसलिए मुझे लगा कि सभी की जानकारी के लिए इसका स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए। 12-13 जनवरी 2020 को मुंबई में हुई सर्व सेवा संघ की कार्यसमिति की बैठक में दो विशेष निर्णय लिये गये थे—मुझे चुनाव अधिकारी बनाया गया तथा सेवाग्राम आश्रम के अध्यक्ष श्री टीआरएन प्रभु के विवाद के समाधान के लिए उनसे बातचीत कर निर्णय लेने का अधिकार श्री महादेव विद्रोही को दिया गया। लेकिन उन्होंने श्री प्रभु से बात किये बिना ही उन्हें पदमुक्त करने की घोषणा कर दी।
यद्यपि श्री महादेव विद्रोही की सर्व सेवा संघ में निरंकुशता लंबे समय से चली आ रही थी और उसे कार्यसमिति के सदस्यों और कार्यालय के कर्मचारियों सहित सभी चुपचाप सहन करते आ रहे थे, जो कि सर्वोदय जैसे संगठन में नहीं होना चाहिए। ऐसा व्यवहार सहन करने वाले सभी सर्व सेवा संघ की आज की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन जब श्री महादेव विद्रोही ने कार्यसमिति द्वारा दिये गये ‘आपस में बातचीत कर निर्णय लेने के अधिकार’ का दुरुपयोग करते हुए सेवाग्राम आश्रम के अध्यक्ष श्री टीआरएन प्रभु को पदमुक्त किया, तो बवाल शुरू हो गया। धीरे-धीरे शुरू हुआ विरोध क्रमश: तीव्र रूप लेने लगा। यद्यपि इस बीच श्री टीआरएन प्रभु ने भी एक बार तो महादेव विद्रोही पर आरोप लगाते हुए समाचार पत्रों में साक्षात्कार के साथ-साथ त्याग-पत्र भी दे दिया, लेकिन शीघ्र ही उन्हें लगा कि उनसे भूल हो गयी है। जब महादेव विद्रोही बने रह सकते हैं तो वे क्यों नहीं, तो उन्होंने कुछ समय बाद अपना त्याग-पत्र वापस ले लिया।
जब इस संबंध में बाहर से श्री महादेव विद्रोही पर दबाव बढ़ने लगा, तो चुनाव अधिकारी के रूप में जिम्मेदार मानते हुए सर्वोदय के अंदर और बाहर के अनेक लोग मुझे पत्र लिखने लगे। लेकिन श्री महादेव विद्रोही यहीं नहीं रुके, उनका निरंकुश शासन लगातार चलता रहा, उन्होंने सुश्री आशा बोथरा को ट्रस्टी मंडल की सदस्यता से और श्री चंदन पाल को महामंत्री पद से हटा दिया। इन घटनाओं से क्षुब्ध होकर श्री रमेश पंकज ने स्वयं मंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया। इस पर मैंने तत्काल श्री महादेव विद्रोही को व्यक्तिगत रूप से इन लोगों को वापस लेने की सलाह दी, जिसको उन्होंने अनसुना कर दिया। तब मैंने कार्यसमिति के कुछ अन्य सदस्यों से बात कर श्री महादेव विद्रोही पर कार्यसमिति की बैठक बुलाने के लिए दबाव डाला।
8 जून, 2020 को जूम पर कार्यसमिति की बैठक बुलायी गयी, जिसमें सेवाग्राम आश्रम के प्रकरण के समाधान के लिए चर्चा करते हुए मेरे संयोजन में चार सदस्यों की एक कमेटी बनायी गयी, जिसमें मेरे सहित श्री जयवंत मठकर, श्री लक्ष्मीदास तथा श्री अरविन्द रेड्डी को लिया गया। कमेटी ने सभी तथ्यों की पड़ताल तथा सभी संबंधित व्यक्तियों से बात कर 15 दिन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। रिपोर्ट में जो सिफारिशें की गयी, उनमें श्री टीआरएन प्रभु, श्री चंदन पाल, सुश्री आशा बोथरा तथा श्री रमेश पंकज को वापस लेने का आग्रह मुख्य था, लेकिन श्री महादेव विद्रोही ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
श्री महादेव विद्रोही ने कार्यसमिति की सिफारिशों पर तो ध्यान नहीं ही दिया, बल्कि कार्यसमिति की राय जाने बिना और संविधान की परवाह किये बिना चार नयी नियुक्तियां और कर दीं—श्री प्रशांत गूजर को कार्यालय मंत्री, श्री लक्ष्मण सिंह को महामंत्री, श्री आनन्द किशोर और चन्द्रकांत चौधरी को मंत्री बना दिया। इसमें जानबूझ कर की गयी निम्न त्रुटियां हैं-
- श्री महादेव विद्रोही का अध्यक्षीय कार्यकाल 31 मार्च, 2020 को समाप्त हो गया और उन्हें 12-13 जनवरी, 2020 को मुंबई में हुई सर्व सेवा संघ की कार्यसमिति की बैठक में नये चुनाव होने तक कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहने की स्वीकृति दी गयी थी। इसका अर्थ दैनंदिन कार्यों का संपादन मात्र था, नीतिगत पैâसले लेना नहीं।
- सर्व सेवा संघ के संविधान में महामंत्री का कोई प्रावधान नहीं है—धारा 10 ई में स्पष्ट लिखा है—संघ के अध्यक्ष आवश्यकतानुसार कार्यसमिति के सदस्यों में से मंत्री, सहमंत्री आदि एक या अधिक पदाधिकारी मनोनीत कर सवेंâगे। इसलिए महामंत्री की नियुक्ति मूलत: ही गलत है।
- कार्यालय मंत्री का सर्व सेवा संघ के संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए कार्यालय मंत्री की नियुक्ति भी पूरी तरह गलत है।
- मंत्री, सहमंत्री आदि की नियुक्ति धारा 10 ई के अनुसार कार्यसमिति के सदस्यों में से ही की जा सकती है, जबकि श्री महादेव विद्रोही द्वारा नव नियुक्त महामंत्री और मंत्री श्री लक्ष्मण सिंह, श्री आनन्द किशोर और श्री चन्द्रकांत चौधरी कार्यसमिति के सदस्य ही नहीं हैं।
इससे स्पष्ट है कि उन्होंने संविधान विरोधी और अनैतिक होते हुए भी जानबूझ कर ये गलतियां की। इस पर मैंने चुनाव अधिकारी के रूप में उन्हें पत्र लिखकर ये नियुक्तियां निरस्त करने का आग्रह किया, लेकिन उन पर तो अध्यक्षीय अधिकारों का जूनून सवार था, सो ‘ये अध्यक्ष का अधिकार है’ और ‘आपको संगठन के कार्यों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है’ जैसे शब्दों से जवाब देकर उन्होंने मुझे चुप कराने की कोशिश की, जैसा कि वे अब तक कार्यसमिति के सदस्यों और कार्यालय के कर्मचारियों को चुप कराते रहे हैं।
श्री महादेव विद्रोही ने सर्व सेवा संघ के कार्यालय पर अपना शिवंâजा इस तरह कस लिया था कि वहां से कोई भी सूचना प्राप्त करना असंभव हो गया था। वहां के कर्मचारी इतने भयभीत थे कि वे मुझे कोई भी जानकारी देने से कतराने लगे। एक बाहरी व्यक्ति को कार्यालय में आने वाली और बाहर भेजी जाने वाली सभी डाक, ई-मेल आदि की निगरानी करने के लिए बिठा दिया, अर्थात् अघोषित सेंसरशिप लगा दी। इन सब गतिविधियों से मुझे लगा कि ऐसी स्थिति में निष्पक्ष चुनाव कराया जाना असंभव है, प्रबंधक ट्रस्टी श्री अशोक शरण का काम करना तो और भी मुश्किल हो गया। तब मैंने परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए मैंने 3.9.20 को श्री महादेव विद्रोही को एक निजी पत्र लिखा, जिसमें मैंने स्पष्ट रूप से उन्हें पद त्याग करने की सलाह दी। इस पत्र का अंतिम पैरा देखें—
‘मेरा आपको त्यागपत्र देने के लिए लिखना अनाधिकार चेष्टा हो सकती है, लेकिन यह एक निरपेक्ष और नि:स्वार्थ भाव से आपको बिना मान सम्मान की हानि उठाये वर्तमान विकट स्थिति से उबारने की मित्रवत कोशिश है। मैं चाहता हूं कि आप न केवल अभी के आसन्न संकट से निष्कलंक होकर निकलें, बल्कि चुनाव के बाद भी सर्वोदय समाज में अच्छी स्थिति बनाये रख सवेंâ। यह तभी संभव है, जब आप अभी त्यागपत्र देकर सम्मानपूर्वक अलग हो जायें। आपका सम्मान पूरी तरह बना रहे, यह हम अवश्य सुनिश्चित करेंगे। आप यथावत अग्रिम पंक्ति में बने रहेंगे। मुझे जब भी आवश्यकता हो, आप अपने साथ खड़ा पायेंगे, ऐसा विश्वास रख सकते हैं। मैं एक बार फिर अपना मित्रवत आग्रह दोहरा रहा हूं, पद के व्यामोह से निकलिये और तुरंत त्यागपत्र देकर अलग हो जाइये। जितनी शीघ्रता करेंगे, उतना हित में होगा, जितना विलंब करेंगे, उतनी ही हानि की आशंका बढ़ती जायेगी।’
इसके साथ ही मैंने उनसे तत्काल कार्यसमिति की बैठक बुलाने का आग्रह किया। उन्होंने इसके प्रत्युत्तर में सब कुछ अपने अधिकार क्षेत्र में होने की बात दोहराते हुए टालने की कोशिश की। जब मुझे लगा कि वे बैठक बुलाने को तैयार नहीं हैं, तब मैंने प्रबंधक ट्रस्टी श्री अशोक शरण के साथ मिलकर 23 सितंबर को कार्यसमिति की बैठक बुलाने का निमंत्रण भेजा। यद्यपि यह निमंत्रण श्री महादेव विद्रोही को भी भेजा गया था, लेकिन यह उनको अपने अधिकार का उल्लंघन लगा। इस पर उनकी प्रतिक्रिया देखिये—
‘सर्व सेवा संघ की नियमावली के अनुसार अध्यक्ष या उनकी अनुमति से मंत्री ही कार्यसमिति की बैठक बुला सकते हैं। आपको बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं है। सर्व सेवा संघ के लेटर हैड का उपयोग नहीं करें। आगे लेटर हैड का उपयोग आपराधिक कृत्य माना जायेगा। आपने जिन लोगों को पत्र लिखा है, उसमें से कई लोकसेवक नहीं हैं और कई का संबंध गांधी की हत्या से जुड़े संगठनों के साथ है। आपका ऐसा अध:पतन हो जायेगा इसकी कल्पना नहीं थी।’
इससे यह प्रत्यक्ष अनुभव हुआ कि 6 वर्षों के सत्तासुख ने श्री महादेव विद्रोही में इतना अहंकार पैदा कर दिया है कि अपने अतिरिक्त उन्हें सभी अल्पबुद्धि, अयोग्य और गांधी-विचार विरोधी लगने लगे हैं, उनके इस क्रोधपूर्ण पत्र के उत्तर में मैंने उन्हें फिर समझाने का प्रयत्न किया-
‘संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि कार्यसमिति की बैठक अध्यक्ष या मंत्री ही बुलायेगा। आपके द्वारा 31 मार्च 2020 के पहले और बाद में किये गये असंवैधानिक कृत्यों की लंबी सूची का उल्लेख यहां न तो संभव है, न प्रासंगिक। इसके बावजूद आपसे कार्यसमिति की बैठक बुलाने का हमने कई बार अनुरोध किया था। जब आपने अपने अहंकारवश बैठक नहीं बुलाई, तब हमें बुलानी पड़ी। इसमें संविधान का कतई उल्लंघन नहीं है। फिर संविधान की परवाह तो उसे होती है, जिसने कभी उसका पालन किया हो। प्रभु, आशा बोथरा और चंदन पाल को हटाते समय तथा उदारतापूर्वक अथवा अपने स्वार्थवश किसी को कार्यालय मंत्री, किसी को महामंत्री और मंत्री बनाते समय आपने कब संविधान का पालन किया, कभी सोचा है?’
आपने सर्व सेवा संघ के लेटरहैड के उपयोग को हमारा आपराधिक कृत्य बताया है। आपके भाषा और शब्द ज्ञान पर मुझे आश्चर्य है। आपराधिक कृत्य चोरी करना होता है। सर्व सेवा संघ आपकी दुकान नहीं है, जहां से हमने लेटरहैड चुराया हो। यह सार्वजनिक संगठन है, जिसके प्रबंधक ट्रस्टी और चुनाव अधिकारी को उसके लेटरहैड का उपयोग करने का पूर्ण अधिकार है।’
इस बीच श्री महादेव विद्रोही का निरंकुश अभियान जारी रहा और उन्होंने बिना कार्यसमिति और चुनाव अधिकारी से सलाह किये 5-6 दिसंबर को फर्रुखाबाद में सर्व सेवा संघ का अधिवेशन आयोजित किये जाने की घोषणा कर दी। यह आयोजन एक ऐसे व्यक्ति के कहने पर किया गया, जिसे हाल ही में श्री महादेव विद्रोही ने असंवैधानिक तरीके से सर्व सेवा संघ का महामंत्री मनोनीत किया था, जो कि कार्यसमिति के सदस्य भी नहीं हैं।
इन सब परिस्थितियों को देखते हुए यह स्पष्ट हो गया था कि श्री महादेव विद्रोही के रहते निष्पक्ष चुनाव कराया जाना असंभव है। इन आशंकाओं को लक्षित कर कार्यसमिति के अधिकांश सदस्यों और प्रदेशाध्यक्षों ने मुझसे शीघ्रातिशीघ्र कार्यसमिति की बैठक बुलाने का आग्रह किया। अंतत: मैंने प्रबंधक ट्रस्टी श्री अशोक शरण के सहयोग से 23 सितंबर, 2020 को गूगल पर कार्यसमिति की बैठक बुलाने का निर्णय किया।
23 सितंबर, 2020 को प्रात: 11 बजे आयोजित इस बैठक में मूल कार्यसमिति (श्री महादेव विद्रोही द्वारा 2017 में घोषित) के 12 में से 10 सदस्य, 6 प्रदेशों के अध्यक्ष, कई समितियों के अध्यक्ष, संयोजक तथा तीन पूर्व अध्यक्षों सहित अनेक वरिष्ठ लोकसेवक (कुल 26 लोग) उपस्थित थे। इससे यह सिद्ध होता है कि बैठक कितनी महत्त्वपूर्ण थी। बैठक में समूचे घटनाक्रम को सुनने के बाद सभी ने एक स्वर में श्री महादेव विद्रोही को तत्काल अध्यक्ष पद से मुक्त करने की मांग की, जिसे सर्वानुमति से स्वीकार किया गया। फिर चुनाव होने तक किसी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने का प्रश्न उठा। इस पर श्री आदित्य पटनायक ने श्री चंदन पाल का नाम रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। अधिवेशन की चर्चा चलने पर महाराष्ट्र प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष श्री शिवचरण ठाकुर ने वर्धा में अधिवेशन का प्रस्ताव दिया, जिसके आतिथ्य की जिम्मेदारी उन्होंने ली। अधिवेशन की तिथियों की घोषणा सरकार द्वारा कोरोना की सामान्य स्थिति घोषित किये जाने पर की जायेगी। इस प्रकार यह घटनाक्रम इस परिणति तक पहुंचा।
कार्यकारी अध्यक्ष चुने जाने के बाद श्री चंदन पाल सर्व सेवा संघ कार्यालय पहुंचते, उससे पहले ही श्री महादेव विद्रोही वहां पहुंच गये, लेकिन उनके साथ वर्धा या महाराष्ट्र का एक भी लोकसेवक या सर्वोदय कार्यकर्ता नहीं था और वे कांग्रेस के कुछ स्थानीय लोगों को साथ लेकर आये, लेकिन विपरीत परिस्थिति को भांप कर चले गये।
इस पूरे घटनाक्रम में कौन-सा उतावलापन या संविधान अथवा सर्वोदय विचार विरोधी कृत्य दिखायी देता है, आप ही सोचें। हमने जो किया, वह सर्वोदय विचार और विखंडन के कगार पर खड़े सर्व सेवा संघ के संगठन को बचाने तथा नये अध्यक्ष का निष्पक्ष और निर्विघ्न चुनाव सुनिश्चित करने के लिए किया, जो श्री महादेव विद्रोही के रहते संभव नहीं था। यह आप ऊपर वर्णित घटनाक्रम से बखूबी समझ सकते हैं।
सर्व सेवा संघ को आसन्न संकट से बचाने का मात्र प्रारम्भिक चरण पूरा हुआ है, संगठन के परिष्कार और सर्वोदय विचार के पुनप्र्रतिष्ठिापन की चुनौती अभी सामने है। नये चुनाव में कौन दायित्व संभालेगा, संविधान, संगठन, गांधी दर्शन और सर्वोदय विचार वैâसे प्रतिष्ठित होगा? इन शेष प्रश्नों का उत्तर भविष्य के गर्भ में है, जिसके लिए हम सब उत्तरदायी हैं।
भवानी शंकर कुसुम
चुनाव अधिकारी, सर्व सेवा संघ