‘एक कदम गांधी के साथ’ पदयात्रा के 56 दिन का सफर जंतर मंतर पर सम्पन्न

2 अक्टूबर को राजघाट, बनारस से संविधान, लोकतंत्र, सद्भावना और विरासत को बचाने के संदेश के साथ आरम्भ हुई ‘एक कदम गांधी के साथ- कारवां प्यार का ’ पदयात्रा का समापन 26 नवंबर को जंतर मंतर पर संविधान दिवस समारोह के साथ हुआ। समापन समारोह में 20 से अधिक राज्यों से आए पदयात्रियों के अलावा देशभर से गांधीवादी एवं लोकतांत्रिक संगठनों के साथी भी शामिल हुए और इस ऐतिहासिक पदयात्रा के समापन को यादगार बनाया। 25 नवंबर को एक हजार किमी की दूरी तय करने के बाद यात्रा गांधी निधि,नई दिल्ली पहुँची थी।

26 नवम्बर की सुबह पदयात्री गांधी स्मारक निधि से आगे बढ़कर राजघाट गांधी समाधि पहुँचे और बापू को श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। गांधी समाधि से लौटकर पदयात्रियों का कारवाँ जंतर मंतर पर जनसभा में परिवर्तित हो गया, जहाँ देशभर से लोग बड़ी संख्या में जुटे। सर्वप्रथम कार्यक्रम की शुरुआत भजन और क्रांति गीत से हुई, जिसके बाद पदयात्रियों का स्वागत किया गया।

कार्यक्रम का आरंभ करते हुए सर्व सेवा संघ के युवा प्रकोष्ठ के संयोजक भूपेश भूषण ने अतिथियों एवं पदयात्रियों का स्वागत किया। यात्रा के संयोजक नंदलाल मास्टर ने यात्रा की पृष्ठभूमि एवं उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के सचिव संजय सिंह ने कहा कि यह यात्रा संविधान, लोकतंत्र, सद्भाव और विरासत के संदेश के साथ वाराणसी से शुरू होकर दिल्ली तक पहुँची है- यह अपने आप में ऐतिहासिक कदम है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में सामाजिक सद्भावना की अत्यंत आवश्यकता है और इस यात्रा ने संदेश दिया है कि भारत एक है और एक ही रहेगा। चाहे किसान हों, मजदूर हों, छात्र, दलित, आदिवासी या मछुआरे- समाज के हर तबके के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए यह यात्रा निकली थी, हर किसी का आँसू पोंछने के लिए निकली थी।

समापन सभा की प्रस्तावना करते हुए यात्रा के संयोजक अरविंद अंजुम ने कहा कि यह केवल समापन समारोह नहीं, बल्कि संविधान को याद करने का संकल्प समारोह है। यह यात्रा केवल पदयात्रा नहीं, बल्कि सहयात्रा थी—जिसमें हम भी थे और आप भी। उन्होंने कहा कि यह यात्रा विध्वंस की एक घटना से प्रेरित होकर शुरू हुई (आप जानते ही होंगे कि वाराणसी में तेरह एकड़ भूमि पर स्थित सर्व सेवा संघ की इमारतों को सरकार द्वारा ध्वस्त कर दिया गया)। यह सरकार सूफी-संतों की विरासत को भी मिटाना चाहती है। जिनका अपना कोई इतिहास नहीं, वे इतिहास को मिटाने पर तुले हैं। यह देश कानून के आधार पर ही चलेगा, किसी की मर्जी से नहीं।

पदयात्रा के संयोजक रामधीरज ने कहा कि गांधी संस्थानों के ध्वस्तीकरण की चिंता से ही इस यात्रा की कल्पना जन्मी। उन्होंने मार्ग के अनुभव साझा करते हुए बताया कि एक साइकिल सवार ने यात्रा का उद्देश्य जानने के बाद अपनी जेब से पाँच सौ रुपये भेंट किए। उन्होंने कहा कि गांधी की विरासत पर हो रहे कब्जे को रोकना हमारा कर्तव्य है। अंत में उन्होंने भावुक होकर कहा-“इस दमनकारी सरकार के खिलाफ लड़ते हुए या तो रास्ते में मरूंगा, या जेल में।”

भारत जोड़ो अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव ने कहा कि सरकार आखिर क्यों गांधी के प्रतीकों को नष्ट कर रही है? पुलिस, सत्ता, मीडिया सब उनके नियंत्रण में है, फिर भी विदेश यात्रा पर प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ता है कि वे गांधी के देश से आए हैं-यह उनकी मजबूरी है। गांधी थे, हैं लेकिन वे रहेंगे या नहीं—इसकी कोई गारंटी नहीं। आज हमें सिर्फ चरखे वाले, रचनात्मक कार्य में लगे गांधी नहीं, बल्कि चंपारण वाले आंदोलनकारी गांधी की जरूरत है। इस यात्रा ने उसी चंपारण वाले गांधी को फिर से जगाया है।

मेधा पाटकर ने कहा कि यह यात्रा गांधी विचार को आगे ले जाने का महत्वपूर्ण कदम है। यह केवल पदयात्रा नहीं, बल्कि संघर्ष यात्रा और एक सत्याग्रह था। खुशी की बात है कि इसमें बड़ी संख्या में युवा शामिल हुए। आजादी के आंदोलन में गांधी के साथ भगत सिंह, अशफाकुल्लाह खान जैसे अनेक योद्धाओं ने शहादत दी, और आज हर नागरिक के जीवन एवं मौलिक अधिकारों को बचाने की आवश्यकता है। यदि हम सच्चे गांधीवादी हैं, तो पाँचवीं और छठी अनुसूची के तहत मिले अधिकारों के लिए भी संघर्ष करना होगा। पर्यावरण को बचाना है तो गांधी विचार को आगे बढ़ाना होगा।

गांधी विचारक एवं लेखक कुमार प्रशांत ने कहा कि यह यात्रा का समापन नहीं, बल्कि नई यात्रा का प्रारंभ है। जब हम चलते हैं, तो हमारे भीतर भी कुछ चलता रहता है। हमें नई कल्पनाओं के साथ आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों की कल्पना में एक अलग हिंदुस्तान है, जिन्होंने गांधी को काबू में करने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए। गांधी जहाँ गिरे थे, वहीं से हमने उन्हें फिर उठाया है।

ज्येष्ठ सर्वोदयी रामचंद्र राही ने दक्षिण अफ्रीका के गांधी को याद करते हुए कहा कि जब गांधी ‘मॉरल फोर्स’ लेकर भारत आए, तब उनका सामना ‘ब्रूटल फोर्स’ से हुआ, जिसके प्रतीक अंग्रेज साम्राज्य थे। गांधी ने भारतीयों की आत्मा को मॉरल फोर्स के रूप में संगठित किया और नई सभ्यता तथा नई दुनिया की रचना का मार्ग दिखाया। यह यात्रा उसी मॉरल फोर्स की विजय यात्रा है।

लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के शशि शेखर सिंह और वरिष्ठ सर्वोदयी राधा बहन भट्ट ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि समाज ऐसे ही पराक्रम से आंदोलन होता है। समाज में जब जड़ता आती है तो उसे झकझोरने की जरूरत होती है। इस यात्रा से सामाजिक जीवन में हलचल हुआ है।

सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्दन पाल ने पदयात्रियों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि देश गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है और यह पदयात्रा मील का पत्थर साबित होगी।

पदयात्रा में शामिल युवा साथियों- जगदीश, सचिन, गौरव, आसमा आदिवासी, टेन आदि ने अपने अनुभव साझा किए। पदयात्री श्यामधर तिवारी, विद्याधर मास्टर, फ्लोरीन बहन, सतीश मराठा, सिराज भाई आदि ने भी अपनी बात रखी।

सभा में तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। सर्व सेवा संघ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डॉ. बालाजी कोंपलवार एवं डॉ. सोमनाथ रोड़े की पुस्तक “युवाओं के सवाल गांधी से”, विनोबा जी की चांगदेव पासष्टी और गांधीजी की बालपोथी— इन तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। इन पुस्तकों का प्रकाशन इस बात का साक्षी है कि गांधी को मिटाना आसान नहीं है। राजघाट परिसर के विध्वंस के बाद भी सर्व सेवा संघ प्रकाशन अपना काम निरंतर जारी रखे हुए है।

सभा के अंत में घोषणा की गई कि जहाँ-जहाँ गांधी गए थे, वहाँ की स्मृतियों और इतिहास को सामाजिक जीवन की प्रेरणा बनाने का अभियान चलाया जाएगा। स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों को दोहराया जाएगा।

सभा के दौरान, पदयात्रा के बीच में दिवंगत हुए मुंबई के 73 वर्षीय श्यामनारायण मिश्रा को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।

सभा के दरमियान निशांत कला मंच के साथियों ने जनगीत पेश किया

सभा में अंत में डॉ संत प्रकाश जी द्वारा संविधान का प्रस्तावना करते हुए संकल्प दिलाया गया एवं राष्ट्रगान के साथ पदयात्रा समाप्त हुई। सभा का संचालन यात्रा संयोजक रामधीरज, नंदलाल मास्टर और अरविंद अंजुम ने संयुक्त रूप से किया।

(नोट : लेख में जयंत दीवान की रिपोर्ट के अंश का भी उपयोग किया गया है।)